Monday, May 27, 2013

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कला एवं स्थापत्य
का क्रमिक बिकास

किसी देश की संस्कृति अपने को धर्म, दार्शनिक-विचार, कविता, संगीत तथा कला के
रूप पें अभिव्यक्त करती है। यह उल्लेखनीय है कि 'धारतीय संस्कृति' क्रो अक्षुष्ण बनाये
रखने में कला का महत्वपूगा योगदान रहा है। इसीलिये हाँ. डासुंहैर्द शक्या अग्रवाल ने 'धर्मं
एवं कला' हले भारतीय संस्कृति का देखि." कहा है। कला का प्रग्नहुँपाव सम्पव्रत: मानव
विकास के माय ही सौन्दर्य-भावना की अभिव्यक्ति के लिये हुआ था । ऐसा प्रतीत होता है कि
प्रकृति की गोद में ही विकासोन्मुख मानव ने अलंकस्या अथवा आरमाचुरंज तथा आत्पामिव्यक्ति
के उदेश्य से हो- "कसा 'का सृजन' करके उसे पल्लवित षुथित एवं विकसित किया। इस
संदर्भ में डाँ. धमवतडास्या उपाध्याय का कथन अत्यन्त प्रासंगिक प्रतीत होता है कि-'सभ्यता
के उदय से सुदूरपृवं ही मानव कौरनै, गढ़ने, खीचने तया सिंरजने लगा था 3

पुरातात्विक तथा मानव-जीव शास्वीय साहबों से यह संकेत मिलता है कि- 'कला का
सृजन' एवं विकास मानव विकास के अनुरूप ही होता रहा। अध्ययन एवं अन्वेषणों से ज्ञात
होता है कि ईपू दस सहस्त्र से ईपू आठ सहस कौ अवधि के मध्य मानव है व्यवस्थित
सामाजिक जीवन अपना लिया था औरकृमि के साथ जा मिट्टी की मूर्तियाँ तथा मृदभाषडों की
निर्माण-विधि से पूर्ण विज्ञ हो गया था। वास्तव में “ताम्र-सुंगेय सेन्यव-सम्यत्ता" के आगमन
से (ई पू 3200-10 के मध्य) 'भारतीय-कला का विकसित स्वरूप' दृष्टिगोचर होता है।
क्योंकि पुरातात्विक उस्खननों से प्राप्त अवशेषों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि-'सेन्धव-सप्यता
अथवा हड़प्पा संस्कृति' की कला तीसरी सहम्रान्दि है पू में विश्च की प्राचीनतम तथा अत्यधिक
विकसित3 'कला' थी। उस प्रसंग मैं बीके गोखले' का कथन उपयुक्त प्रतीत होता है कि-
'111८1३९11 अ! 12 1101 01117 0112 ०हूँ1० 016681 111141 दृप्राक्वशिब्दछि ह्माआंधदृगंण्ड 1141: ३1
11110 511०७/5 3 हैंडाप्रा१सेष्टि नुप्रेग्नक्षष्ठग्रेच्चा ०कृरिप्रा११2 ०1' ०प्रपधि1०शि८' अंत: यह कहना
अप्रत्याष्टगेत नहीं होगा कि भारतीय कला का महत्वपूषर्म इतिहासे सेशव-सन्यता से प्रारम्म होता
है । इस काल की मुहरों जिसे के अतिरिक्त हडप्पा से प्राप्त 'वृत्य-धुद्वा' में कत्स्य की नारी
मूर्ति तथा मोहन जौदड्रो से प्राप्त सांड़ (1)1) एवं बन्दर की आकृतियां सम्मत: तत्कालीन
रिग्रल्पियों ( कलाकारों) के उत्कृष्ट-कौराल क्या उच्चकोटि की क्रत्ता का प्रदर्शन करते है। इसके
अतिरिक्त मृदधाग्नड (न्नणाक्षांक्ष) भी कला के क्षेत्र में अपनी विशिष्टता रखते है।

1. अग्रवाल वा. श-, ह्यारतौय बल्ला, भूमिका, मृ. 4
2. उपाध्याय, भ. रा, भा. कला जा इतिहास पृ. 1

3. उपाध्याय. भ. श- भा. कहना का इति. पृ. 1
4- (ऊंगांद्गीशांडा 3. ५.. ष्टिआँटा।। 1०८३3. ०. 185

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