बाल मधुमेही- कुछ अनछुए पहलू सामाजिक व मानसिक दृष्टिकोण |
कल रात टी.वी. देखते हुये इसकी आँखें पथरा गई एवं शरीर काँपने लगा। अस्पताल ले जाने के थोड़ी देर बाद ही यह ठीक हो गई। किंतु आज सुबह खून की जाँच में शक्कर बताई है। लेकिन इससे पहले तो मेरी बेटी ठीक थी एवं वर्तमान में वह तीसरी कक्षा की मेधावी छात्रा है। हमारे सारे खानदान में किसी को शुगर नहीं है। इस जाँच की रिपोर्ट पर मुझे तनिक भी भरोसा नहीं है। कृपया आप ठीक से देखें एवं बताएँ। उक्त कथन था टाइप-1 मधुमेह से ग्रस्त गौरी के हकबकाये पिता शिवदयाल का। खैर! जाँच आदि के बाद बच्ची के बाल मधुमेही होने की पुष्टि हो गई। ‘‘अब इंसुलिन इंजेक्शन ही इसकी जीवनरेखा है। साथ ही समय-समय पर ब्लड शुगर भी चेक करवाते रहें। अन्य किसी भी समस्या के लिए भी तुरंत दिखलाएँ एवं उसे नजर अंदाज न करें।’’ यह कहकर डॉक्टर साहब अपने अगले मरीज में व्यस्त हो गये। इधर गौरी के माता-पिता तो बेजान से हो गये। मासूम गौरी उनके चेहरे के भावों को देखकर शायद अपनी’’ कमी’’ से परिचित हो गई। रोग लाइलाज नहीं है यह जानते हुये भी गौरी के माता-पिता गहरे अवसाद में डूब गये। अनेक अनुत्तरित प्रश्न उनके जेहन में कौध रहे थे:- क्या हमारी बच्ची सामान्य बच्चों की तरह विकसित होगी?
बच्चों में मधुमेह (टाईप-1 डायबिटीज) वास्तव में एक जटिल समस्या है। इसका इलाज इंसुलिन इंजेक्शन, परहेजी भोजन के साथ रोगी को समुचित सामाजिक एवं मानसिक संरक्षण के द्वारा ही सफलतापूर्वक किया जा सकता है। मात्र इंसुलिन इंजेक्शन तक सीमित न रहकर वास्तव में स्वास्थ्य सेवी संगठनो को बाल मधुमेही के लिए सामाजिक, आर्थिक व पारिवारिक संरक्षण देने की दिशा मे भी पहल करनी चाहिए। सामाजिक संरक्षक दल में कोई भी सामाजिक कार्यकर्ता, नर्स, चिकित्सक, पेरामेडिकल कार्यकर्ता, नेतागण, घर के सदस्य, पडोसी, अन्य मरीज या अन्य कोई भी मित्र व हितैषीगण हो सकते है। भावनात्मक व सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही ये संगठन समाज में डायबिटीज रोग के बारे मे जागरूकता फैलाते है। आर्थिक दृष्टि से कमजोर मरीजो के सहायतार्थ धन एवं फ्री इंसुलिन आदि उपलब्ध कराने हेतु सामाज के धनाढय वर्ग की सहायता से ट्रस्ट की स्थापना की जा सकती है। मधुमेह पता चलने के बाद मानसिक तनाव इस रोग के होने का पता चलने के तुरन्त बाद अधिकतर मरीज इस सत्य का सामना सामान्य रूप से नही कर पाते वे तनाव ग्रस्त हो जाते है। कुछ बच्चों मे तो नर्वस ब्रेक डाउन या डिपे्रशन की समस्या देखी जाती है। परन्तु साल -छह महीने बीतते, सब कुछ सामान्य हो जाता है। कुछ बच्चो मे नीद न आना चिड़चिड़ापन, अन्य बच्चो से कम घुलना-मिलना, बातचीत करने में झिझकना आदि लक्षण देखे जाते है। मधुमेह के साथ बड़ा होना एक चुनौती वास्तव में मधुमेह एवं मानसिक परिवर्तनों का चोली दामन का साथ है। बार-बार शुगर कम होना (हाइपो मे जाना) बच्चो के मानसिक विकास में बाधक हो सकता है। साथ ही यह स्नायु तंत्र (Nervous System) एवं शरीर की अन्य रासायनिक प्रक्रियाओं पर भी दुष्प्रभाव डालता है। नतीजतन आंख का पर्दा खराब होना (रेटिनापैथी) गुर्दा खराब होना (नेफ्रोपैथी) पैर में सुन्नपन आना (न्यूरोपैथी) जैसी जटिलताएं असमय सामने आने लगती है। किशोर एवं युवा वर्ग में हार्मोन्स की वजह से होने वाले सामान्य परिवर्तन, उत्सुकता एवं तनाव को जन्म देते है। ऐसे मे मधुमेह ग्रस्त युवा दोहरे मानसिक तनाव को झेलते है। खेल-कुछ, योग-ध्यान, व्यायाम के लिए विशेष रूप से बच्चो को प्रोत्साहित करें। ये क्रीड़ायें स्वाभाविक रूप से ब्लड शुगर कम करती है। इससे बच्चो में स्फुर्ति, आशा एवं आत्म विश्वास का संचार होता है। साथ ही हीन भावना नष्ट होती है। परन्तु बच्चो को खेल के दौरान लगने वाली चोटो पर अवश्य ध्यान दें। उन्हे समझायें कि जुते-चप्पल पहन कर ही खेलना सुरक्षित तरीका होता है। शिक्षा मे कोई कमी न आने दें - बाल मधुमेही की बीमारी का वास्ता देकर उसे स्कूली शिक्षा से वचिंत रखना घोर अपराध है। कुछ स्कूल एवं अध्यापक रोग ग्रस्त बच्चो को एडमीशन देने से कतराते है। वास्तव में ऐसा मधुमेह सम्बंधी उचित जानकारी के अभाव में होता है। बीमारी एवं अनुपस्थिति के दिनो को हटा दे तो आम तौर पर ये बच्चे अच्छे विद्यार्थी साबित होते है। उच्चशिक्षा क्षेत्र, खेलकूद के क्षेत्र एवं अन्य व्यवसायों में ये बच्चे नाम एवं धन अर्जित कर रहे है। स्वामी विवेकानन्द, हालीबुड अभिनेत्री हैलीमेरी, स्टार क्रिकेटर वसीम अकरम आदि साहसिक टाइप-1 मरीजो के ज्वलंत उदाहरण हैं। सच ही कहा है- ‘‘हिम्मत-ए-मर्दा, मदद-ए-खुदा’’। परिवार की भूमिका बाल मधुमेही के सारे परिवार पर किसी न किसी रूप में नाकारात्मक मानसिक प्रभाव देखा जा सकता है। बच्चे की मां को भी बीमारी का पता चलने के बाद मानसिक तनाव व अवसाद की स्थिति से उबरने मे लगभग 4-6 महीने का समय लग जाता है। इस बच्चे की देख भाल का मुख्य दायित्व मां के कन्धो पर होता है। ऐसे में जाहिर है अन्य बच्चों की देखभाल व घर के कामों का भी बोझ उठाना मुश्किल होता है। परिवार के अन्य सदस्यों पर बालमधुमेही की देख भाल एक विशेष जिम्मेदारी है। घर के अन्य सदस्यों की तुलना में जाने -अनजाने बालमधुमेही स्वयं को अलग श्रेणी में खड़ा पाते है। बालमधुमेही यानि सारा जीवन नपा-तुला भोजन, रोजाना इंसुलिन इंजेक्शन, ब्लड शुगर की जांच, व्यायाम आदि । परन्तु माता -पिता की आपसी समझ, घर का तनाव रहित एवं सौहार्द पूर्ण वातावरण, बेहतर वैचारिक आदान-प्रदान एवं रोग ग्रस्त बच्चे के जीवन को बेहतर बनाने का सामूहिक लक्ष्य, रोगी को मानसिक रूप से बेहतर बनाने का सामूहिक लक्ष्य, रोगी को मानसिक रूप से सुदृढ़ बनाकर इस समस्या का मुकाबला करने में सहायक होता है। स्वस्थ टाईप-1 मरीज अक्सर सामान्य सम्बन्ध बनाते है। यहा पर ‘‘ स्वस्थ्य’’ शब्द नियंत्रित मधुमेह एवं अच्छे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का परिचायक है।घर का साकारात्मक वातावरण भी रोगी के व्यवहार व बात चीत पर प्रभाव डालता है। वैवाहिक जीवन सकारात्मक परिवार के बाल मधुमेही आत्म विश्वासी किशोर एवं युवा होते है। ये समान्य वैवाहिक जीवन व्यतीत करते है। इनके रोग सम्बधी सारी जानकारी जीवनसाथी एवं उसके परिवार वालों को होना चाहिये। विवाहोपरांत संतान प्राप्ति की राह थोडी़ कठिनाईयों से भरी हुई हैं। नियमित चिकित्सकीय परामर्श एवं सजगता से इनका भी मुकाबला किया जा सकता है। आत्मविश्वास(Self Confidence) एवं अपने स्वास्थ्य के प्रति रहने वाले बच्चों में शुगर कंट्रोल प्रायः अच्छा रहता है एवं इस रोग की जटिलताएँ भी कम हो जाती है। मधुमेह सम्बंधी जानकारी पत्रिकाओं के माध्यम से प्राप्त करने से रोग सम्बंधी भ्रांतियाँ तों दूर होगी साथ ही आत्म विश्वास भी जागेगा। खान-पान एक समस्या चॉकलेट,मिठाई फास्ट फूड एवं होटल आदि का खाना नही खाने की हिदायतों से तगं आकर कभी-कभी रोगी बगावत भी कर देते है। परन्तु अक्सर यह बगावत महगी पड जाती है अत: खान पान में सदैव सतर्कता बरतें। साथ ही समय समय पर डायटीशियन से मशवरा शुगर कंट्रोल में सहायक सिद्ध होता है। फियर फैक्टर (Fear Factor) रोजाना इंसुलिन इंजेक्शन की चुभन का एहसास व शुगर की जाँच के समय खून निकलने का भय मरीज पर मानसिक दबाव डालता है। यह स्थिति उन्हे स्वंय इंजेक्शन लेने एवं जाँच करने से रोकती है एवं आत्मनिर्भता की दिशा में बाधक है। काँटो भरी राह मधुमेह की जटिलताओं से भरा जीवन रोगी के लिये शारीरिक एवं मानसिक परेशानी का सबब बन सकता है। ये जटिलताये मधुमेही को सदैव याद दिलाती है कि भरसक प्रयास के पश्चात भी वे इस रोग के सामने विवश है एवं यह भावना मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) पैदा करती है। अनियंत्रित मधुमेह अपर्याप्त पारिवारिक संरक्षण, बीमारी को शारीरिक कष्ट, आर्थिक असुरक्षा, इन रोगियों में तनाव व कुंठा की भावना पैदा करता है। आशा की ज्योति इंसुलिन के आविष्कारक सर फ्रेडरिक बेंटिंग के पुश्तैनी मकान जिसमें रहते हुये उनके मन में इंसुलिन का विचार पनपा था के ठीक सामने प्रज्जवलित ‘‘फ्लेम ऑफ होप’’ (Flame of Hope) वास्तव में पीढ़ियों से वैज्ञानिकों व चिकित्सकों के लिये प्रेरणा का श्रोत बनी हुई है। मधुमेह से मुक्ति का उपाय (Permanent Cure) ज्ञात होते ही इस ज्योति को बुझा दिया जायेगा........तब तक शायद इंसुलिन ही बाल मधुमेही मरीजों के लिये एकमात्र आशा .......। |
Dr.Hariharan Ramamurthy.M.D. pl check www.indiabetes.net Big Spring,TX ,79720 ALL THING INTERESTING
Wednesday, August 17, 2016
बाल मधुमेही- कुछ अनछुए पहलू सामाजिक व मानसिक दृष्टिकोण
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